साँझ हुई जब मद्धम सी
कोमल होंठों पर पिघल गई,
स्वर्ण किरणे उन चंद लम्हों की
निशा आई जब धीमे पाँव
चंचल नैनो में कैद हुई,
रेशम सी किरणे निद्रा की
भोर हुई जब उजली सी
कोमल होंठों पर पिघल गई,
स्वर्ण किरणे उन चंद लम्हों की
निशा आई जब धीमे पाँव
चंचल नैनो में कैद हुई,
रेशम सी किरणे निद्रा की
भोर हुई जब उजली सी
हंसी में लिपटी मिश्री घुली
कोयल की कूकती बोली सी
कोयल की कूकती बोली सी
तुझे देख अपने प्रतिरूप,
हृदय पिघला, रोम रोम खिला
बन गई तुम रोशिनी मेरे स्वप्नों की
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